साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये,
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं~~
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार,
जो तुम छोड़ो हाथ सांईजी कौन उतारे पार~~
सांई बिन कैसे लागे पार~~~
मैन अपराधी जन्म को मन में भरा विकार,
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार~~
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़,
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज~~
सांई बिन कैसे लागे पार~~~