जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहरि न लागे डार
आय है सो जाएँगे, राजा रंक फकीर
एक सिंहासन चिढ़ चले, एक बँधे जात जंजीर
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल मे प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग
माया छाया एक सी,बिरला जाने कोय
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान
क्या भरोसा देह का,बिनस जात छिन मांह
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नीच
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय
दान दिए धन ना घटे, नदी न घटे नीर
अपनी आँखो देख लो, यों क्या कहे कबीर
दस दवारे का पिंजरा, तामे पंछी का कौन
रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन
ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ो की हाट
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट
कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार
साधु वचन जल रुप, बरसे अमृत धार
जग मे बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय
मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय
सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप
यह तीनों सोते भले, साकित, सिहं और साँप
अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ
मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात
बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ
अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट
चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट
कबीरा जपना काठ की, क्या दिखलावे मोय
हृदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय
पितवृता मैली, काली कुचल कुरुप
पितवृता के रुप पर, वारो कोटि सरुप
बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार
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Comments (1)
Gaurab Kr Baruah
Jun 14, 2012nice qoute..